Saturday, February 16, 2013

gar rulana

दोस्तों फिर बैठ गया लिखने ग़ज़ल
आप का आशीर्वाद चाहुगा।

गर रूलाना था सनम फिर क्यों हंसाया किसलिये,
बाग़ था महका हुआ क्यों यूं जलाया किसलिये।
खेल इस तकदीर का समझा नही कोई अभी,
अर्श पे चमका सितारा क्यों गिराया किसलिये।
याद तेरी बावफा रखती नही दूरी कभी,
बेवफा तुम हो चले ये जुल्म ढाया किसलिये।
सोचता अपनी सदा दुःख और का कब देखता,
आदमी ने आदमी को क्यों सताया किसलिये
बेखबर जलता रहा अपनी लगाई आग में,
बैठ कर सोचा नही इन्सान आया किसलिये।
अलविदा "रैना"चले अब छोड़ तेरा ये नगर,
मौत बिन मरते रहे क्यों दिल दुखाया किसलिये।"रैना"

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