Sunday, February 3, 2013

yad teri ne

दोस्तों इक और रचना
आप की खिदमत में पेश है।

दर्द जख्मों ने रुलाया ही बहुत है,
याद तेरी ने सताया ही बहुत है।
दिन महीने साल गुजरी है मुद्दते,
आज फिर तू याद आया ही बहुत है।
सोच करता ही नही कल रात होगी,
आदमी ने मन गिराया ही बहुत है।
हाल अपना ब्यान करता इश्क देखो।
हुस्न ने दिल को जलाया ही बहुत है।
खत्म होगा सिलसिला ये सोच कर ही,
दाग उल्फत का मिटाया ही बहुत है।
चाल गिरगट सी चले भ्रष्ट मसीहा,
आम जन मुर्ख बनाया ही बहुत है।
शाम"रैना"हो चली अब गौर कुछ कर,
लुत्फ़ जीवन का उठाया ही बहुत है।"रैना"



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