पेश है ग़ज़ल दोस्तों
तुम हसीं हो मस्त तेरी ये अदा है,
सादगी पे तेरी मेरा दिल फ़िदा है।
दीद तेरे की तलब मिटती नही अब,
बावफा क्यों दूर हम से तू जुदा है,
सोचते है बैठ तन्हा याद करते,
रूठता क्यों किसलिये अपना खुदा है।
क्यों गिला शिकवा करे उस किसी से,
दिल लगाने की मिली"रैना"सजा है। "रैना"
तुम हसीं हो मस्त तेरी ये अदा है,
सादगी पे तेरी मेरा दिल फ़िदा है।
दीद तेरे की तलब मिटती नही अब,
बावफा क्यों दूर हम से तू जुदा है,
सोचते है बैठ तन्हा याद करते,
रूठता क्यों किसलिये अपना खुदा है।
क्यों गिला शिकवा करे उस किसी से,
दिल लगाने की मिली"रैना"सजा है। "रैना"
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