दोस्तों मेरी किताब की
इक और ग़ज़ल आप की नजर है
खैर ये मेरे जिगर का टुकड़ा है
आप को कैसी लगी बताना
कैसे मिले तुझसे बहाना ही नही,
गुलशन फकीरों का ठिकाना ही नही।
अक्सर मिली पीड़ा परेशानी तड़फ,
हमने ख़ुशी को घर दिखाना ही नही।
ये दिल खता करता यही डर है मुझे,
मन्जर हसीं दिल को दिखाना ही नही।
खुशबू महकती है उमर भर याद की,
बुत को गले से अब लगाना ही नही।
चार कन्धों पे जब चढ़े "रैना" चले,
फिर लौट के उसने कभी आना ही नही।"रैना"
इक और ग़ज़ल आप की नजर है
खैर ये मेरे जिगर का टुकड़ा है
आप को कैसी लगी बताना
कैसे मिले तुझसे बहाना ही नही,
गुलशन फकीरों का ठिकाना ही नही।
अक्सर मिली पीड़ा परेशानी तड़फ,
हमने ख़ुशी को घर दिखाना ही नही।
ये दिल खता करता यही डर है मुझे,
मन्जर हसीं दिल को दिखाना ही नही।
खुशबू महकती है उमर भर याद की,
बुत को गले से अब लगाना ही नही।
चार कन्धों पे जब चढ़े "रैना" चले,
फिर लौट के उसने कभी आना ही नही।"रैना"
Bahut hee sundar hai.
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