दोस्तों पेशे खिदमत है इक नये रंग की रचना,
बात अब बनती नही,राम चौराहे खड़े,
चाल रावण चल गया,जानकी अब क्या करे।
जी रहे उस हाल ज्यों बाग में सीता डरी,
राक्षस खूंखार हैं,बेअजल कैसे मरे।
कौरवों के राज में,सच कहे तो पाप है,
चम्मचों की फ़ौज हैं,अब विधुर कैसे लड़े।
दूर तक देखो कभी,स्याह काली रात है,
सोच "रैना"राह में,रौशनी कैसे करे। "रैना"
सुप्रभात जी ........जय मेरी माँ
बात अब बनती नही,राम चौराहे खड़े,
चाल रावण चल गया,जानकी अब क्या करे।
जी रहे उस हाल ज्यों बाग में सीता डरी,
राक्षस खूंखार हैं,बेअजल कैसे मरे।
कौरवों के राज में,सच कहे तो पाप है,
चम्मचों की फ़ौज हैं,अब विधुर कैसे लड़े।
दूर तक देखो कभी,स्याह काली रात है,
सोच "रैना"राह में,रौशनी कैसे करे। "रैना"
सुप्रभात जी ........जय मेरी माँ
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