विरहा की मारी,
मैं बेचारी।
भटक रही हूँ प्यासी,
मेरे हिस्से में तड़फ।
तन्हाई ओ उदासी।
भीड़ बड़ी लगा मेला है,
सब का अपना दुःख झमेला है।
मेरा कोई भी जिकर नही ,
मेरी किसी को फिकर नही।
सब है अपनी मस्ती में,
आग लगी मेरी बस्ती में।
मैं तो बैठी रोती जाऊ,
छिन बिन सी होती जाऊ।
क्यों मेरी खबर नही लेता,
जिसकी मैं वो दुःख देता।
क्या ऐसे यहां से जाऊ गी,
पी के दर्शन न कर पाऊ गी।
यही कारण मेरी उदासी का,
फिर चक्कर वही चौरासी का।
काश दर्द मेरा वो जान जाये,
"रैना" मकसद पूरा सुख पाये। "रैना"
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