मेरी किताब की मेरी पसंद की
ग़ज़ल आप को कैसी लगे गी,
सोचता तो और कुछ,
हो रहा कुछ और है,
अब घड़ी मुश्किल बड़ी,
आदमी कमजोर है।
बाप बेटे से दुखी,
हाल से बेहाल मां,
प्यार मन में ही नही,
बेवजह का शोर है।
इश्क में मुश्किल बड़ी,
अब वफा मिलती नही,
क्यों गिला शिकवा करे,
बेवफा ये दौर है।
अब सियासत में वही,
मार सकता तीर है,
बेशर्म जो बेहया,
घाघ शातिर चोर है।
रात होनी है अभी,
सोच ले "रैना"कभी,
उठ मुसाफिर चल दिये,
क्यों न करता गौर है। "रैना"
ग़ज़ल आप को कैसी लगे गी,
सोचता तो और कुछ,
हो रहा कुछ और है,
अब घड़ी मुश्किल बड़ी,
आदमी कमजोर है।
बाप बेटे से दुखी,
हाल से बेहाल मां,
प्यार मन में ही नही,
बेवजह का शोर है।
इश्क में मुश्किल बड़ी,
अब वफा मिलती नही,
क्यों गिला शिकवा करे,
बेवफा ये दौर है।
अब सियासत में वही,
मार सकता तीर है,
बेशर्म जो बेहया,
घाघ शातिर चोर है।
रात होनी है अभी,
सोच ले "रैना"कभी,
उठ मुसाफिर चल दिये,
क्यों न करता गौर है। "रैना"
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